Thursday, November 3, 2011

कविता

रात भर सपनों में
तैरती रही कविता
सुबह उठ ईश्वर से की प्रार्थना
कि दिन भर लिखूं कविता

और प्रार्थना के बाद

इस तरह शुरू हुआ क्रम
मेरे लिखने का ...

मैने बेली कविता

पकाई विश्वास और नेह की आंच में
तुमने किया उसका रसास्वादन
की तारीफ, तो उमड़ने लगीं
और और कवितायेँ ...

बुहारे फालतू शब्द लम्बी कविता से

आंसुओं की धार से भिगो किया साफ़
तपाया पूरे घर से मिले
सम्बन्धों की आंच में
तो खिल उठी कविता
तुमने उसे पहना, ओढा, बिछाया
मेरी मासूम संवेदनाओं के साथ
तो सार्थक हुई मेरी कविता

तुम्हारे दफ्तर जाने पर

मैंने लिखी कविता दुआ की
कि बीते तुम्हारा दिन अच्छा
घर लौटने पर न हो ख़राब तुम्हारा मूड
न उतरे इधर-उधर की कड़वाहट घर पर

तुम आओ तो मुस्कारते हुए

भर दो मेरी कविता में इन्द्रधनुषी रंग
और हम मिलकर लिखे
एक कविता ऐसी
जो हो मील का पत्थर ।

3 comments:

  1. waah bhabhi ji waah ! bahut khoob!! badhiya kavita hai. aap roj aise hi likhti rahen.

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  2. मैने बेली कविता
    पकाई विश्वास और नेह की आंच में
    तुमने किया उसका रसास्वादन
    की तारीफ, तो उमड़ने लगीं
    और और कवितायेँ ...
    ..bahut badiya bimb ke sath sundar kavita...
    haardik shubhkamnayen!

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